सीएसआरआई-एनबीआरआई, लखनऊ में एक सप्ताह तक चलने वाले एक सप्ताह एक प्रयोगशाला कार्यक्रम के तीसरे दिन पादप विविधता, वर्गिकी एवं पाद्पालय पर प्रदर्शनी का उदघाटन आज किया गया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव श्री दुर्गा शंकर मिश्रा मुख्य अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में उपस्थित रहे जबकि भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण, कोल्कता के पूर्व निदेशक डॉ. एम् संजप्पा; सीएसआईआर -एनबीआरआई, लखनऊ के पूर्व निदेशक डॉ. पी वी साने एवं सीएसआईआर-खनिज एवं सामग्री अनुसंधान संस्थान, भुबनेश्वर के निदेशक डॉ. रामानुज नारायण विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। इस अवसर पर डॉ. एम् संजप्पा ने भारत में वानस्पतिक विविधता पर एक वैज्ञानिक व्यख्यान भी प्रस्तुत किया।
उदघाटन समारोह में सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. ए के शासनी ने बताया कि आज ‘पादप विविधता, वर्गिकी एवं पाद्पालय’ विषय सम्बंधित थीम पर आयोजित कार्यक्रमों में से प्रमुख रूप से भारत के राज्यों के राजकीय फूलों की सचित्र प्रदर्शनी, पादप विविधता में वर्गीकरण की द्विनाम पद्धति के जनक कैरोलस लिनियस द्वारा वर्गीकृत किये गए पौधों को प्रदर्शित करती हुई लिनियन ट्रेल, पाद्पालय में नमूनों के संरक्षण की तकनीक, पादप विविधता विभाग की उपलब्धियों, कार्यों एवं प्रकाशनों की प्रदर्शनी लगायी गयी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान भारत में पौधों पर बहुआयामी शोध करने वाला ऐसा एक संस्थान है जो वनस्पति विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों पर संपूर्णता से कार्य कर रहा है। इस प्रदर्शनी में भारत के सभी राज्यों के राजकीय पुष्पों की सचित्र जानकारी प्रदान करने वाले फोटो पॉइंट पर लोग सेल्फी लेने में काफी रुचि प्रदर्शित कर रहे हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री दुर्गा शंकर मिश्रा ने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्रों के बढ़ते क्षरण को कम करने के लिए हमे ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने होंगे और इसके लिए लोगो को जागरूक भी करना होगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को अपने कार्य पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा की जिस तरह से विभिन्न पादप प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं, ऐसे में इनके अभिलेखन में वर्गिकी अध्ययनों एवं पादपालय (हरबेरियम) का बहुत महत्व है। उन्होंने इस अवसर पर जारी किए गए ‘उत्तर प्रदेश के ई-फ्लोरा’ तथा ‘उत्तर प्रदेश के पादप संसाधन’ पुस्तक को एक बड़ी उपलब्धि बताया। श्री मिश्रा ने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि किसानों की आय बढ़ाने पर ध्यान देते हुए शोध कार्य करें ताकि प्रदेश एवं देश को आत्मनिर्भर बनाने एवं उन्नति में योगदान हो सके। उन्होंने वैगानिकों से कहा कि क्या हम प्रदेश में औषधीय या अन्य रूप से महत्वपूर्ण पौधों की खेती के द्वारा ऐसा कुछ कर सकते हैं जिससे किसानों की आय बढे। पादप वर्गिकी अध्ययनों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी अपार वानस्पतिक ज्ञान का भण्डार उपलब्ध है अतः वैज्ञानिकों को इस ज्ञान को भी सामने लाने के प्रयास किये जाने चाहियें।
विशिष्ट अतिथि डॉ. पी वी साने ने कार्यक्रम की शुभकामनाएं दीं एवं अपने संबोधन में जैव विविधता को संपूर्णता में समझने पर बल दिया जिसमें पौधों का आपस में संबंध, पौधों एवं सूक्ष्म जीवों तथा, पौधों एवं कीटों के आपसी संबंध भी शामिल हैं |
विशिष्ट अतिथि डॉ. एम संजप्पा ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि सभी वैज्ञानिक संस्थानों के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी उपलब्धियों एवं कार्यों को आम जनता तक पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि तमाम जैविक संसाधन बहुत तेजी से विलुप्त हो रहे हैं, जिनका संरक्षण बहुत आवश्यक है, और इस कार्य के लिए इन संसाधनों का अभिलेखीकरण बहुत आवश्यक है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस कार्य के लिए आवश्यक वर्गिकी विशेषज्ञ देश में बहुत तेजी से कम हो रहे हैं और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने इस अवसर पर अल्प ज्ञात सजावटी पौधों की विविधता पर शोध करने पर भी बल दिया।
डॉ. रामानुज नारायण ने अपने संबोधन में कहा कि आज आम प्रयोग में आने वाले पॉलीमर प्रकृति से प्राप्त हो रहे हैं जिनमें पौधों से प्राप्त होने वाले पॉलीमर भी हैं। इन पॉलीमर का उपयोग विषाक्तता को कम करने एवं इनकी जुड़ाव क्षमता को नियंत्रित किया जा सके. उन्होंने कहा कि आने वाला समय जैव-विविधता जनित एवं विशेष रूप से पादप जनित उत्पादों का है।
इस अवसर पर गणमान्य अतिथियों ने ‘उत्तर प्रदेश के पादप संसाधनों पर’ संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गयी पुस्तक का भी विमोचन किया। इसके साथ-साथ उत्तर प्रदेश के ई-फ्लोरा एवं एनबीआरआई के पाद्पालय की विवरणिका को भी जारी किया गया। इस ई फ्लोरा एवं पुस्तक में उत्तर प्रदेश के 5००० से अधिक पादपों की सूची एवं जानकारी प्रस्तुत की गयी है
कार्यक्रम के अप. सत्र में पादप वर्गीकरण और जैव विविधता: पार क्षेत्रीय संरक्षण और सतत विकास पर संबंध और प्रभाव पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमे मुख्य रूप से प्रो एम.के. जनार्थनम, गोवा विश्वविद्यालय से; प्रो. एस.आर. यादव कोल्हापुर विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र से; डॉ. एम. साबू कालीकट विश्वविद्यालय, केरल से; डॉ. मैथ्यू लॉ, तिरुवनंतपुरम से; पूर्व वैज्ञानिक डॉ. यू सी लवानिया, ऑर्गेनिक इंडिया प्रा. लिमिटेड से, डॉ. पी. रागवन, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली से; डॉ. डी.के. उप्रेती एवं डॉ. के.एन. नायर, पूर्व मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनबीआरआई; डॉ. डी.के. सिंह, पूर्व वैज्ञानिक, बीएसआई; डॉ. वी. सुंदरेसन, बेंगलुरु उपस्थित थे |
एक सप्ताह-एक प्रयोशाला के दूसरे दिन 15.08 .2023 को 77 वें स्वंतंत्रता दिवस के अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. ए के शासनी ने संस्थान के के एन कौल परिसर में एवं दूरस्थ अनुसंधान केंद्र, बंथरा में ध्वजारोहण किया | इसके साथ साथ संस्थान द्वारा दूरस्थ अनुसंधान केंद्र में एक वृहत पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमे संस्थान के वैज्ञानिकों, शोधार्थियों आदि द्वारा मियावाकी जंगल एवं गुलाब मात्र प्रखंड में पौधारोपण किया गया | सीएसआईआर पुष्पकृषि मिशन के अंतर्गत शुरू किये गए नगर सुन्दरीकरण अभियान के अंतर्गत संस्थान के के एन कौल ब्लाक के सामने रोड डिवाइडर पर आलंकारिक पुष्पों का पौधारोपण किया गया |
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